Special Report: गैर संक्रमित बीमारियों पर भारी पड़ता कोरोना

Special Report: गैर संक्रमित बीमारियों पर भारी पड़ता कोरोना

नरजिस हुसैन

पिछले कुछ महीनों से भारत की पूरी स्वास्थ्य व्यवस्था सिर्फ और सिर्फ कोरोना को ही गंभीरता से ले रही है। कोरोना एक महामारी जरूर है लेकिन क्या ये सही होगा कि हम कोरोना पर ही पूरा जोर लगा दें और बाकी की बीमारियों को करीब-करीब महामारी बनने के लिए छोड़ दें। बाकी बीमारियों पर अस्पतालों के ढुलमुल रवैए को देखते हुए देश में जन स्वास्थ्य सेवाओं पर बड़ा सवाल खड़ा होना शुरू हो गया है।

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अलग-अलग अध्ययनों से साबित हुआ है कि भारत बीते 10 सालों में नॉन कम्युनिकेबल बीमारियों (एनसीडी) का गढ़ बन चुका है। दिल से जुड़ी बीमारियां, कैंसर, सांस संबंधी रोग, डायबिटीज और मानसिक रोग देश में अब आम है। कोरोना आने के बाद से लोगों के जीवन में बड़े बदलाव आने शुरू हो चुके हैं। कोरोना की चपेट में आज न सिर्फ बूढ़े बल्कि सभी उम्र के लोग हैं। देश में 21-40 की उम्र के कोरोना पॉजिटिव करीब 42 प्रतिशत मामले हैं जबकि 41-60 की उम्र के 33 प्रतिशत लोग कोरोना के शिकार हो रहे हैं। 21-40 साल की उम्र में कोरोना पॉजिटिव के मामले इसलिए ज्यादा दर्ज हो रहे हैं क्योंकि इस उम्र के लोग या तो काम के या घूमने के लिए सबसे ज्यादा यात्राएं करते हैं।

नॉन कम्युनिकेबल बीमारियों में बढ़ोतरी के चलते यहां कोरोना पॉजिटिव के मामले भी तेजी से बढ़ रहे हैं और ऐसे लोगों में कोरोना फैलने का खतरा भी ज्यादा होता है। इन हालातों ने देश में पहले ही से एनसीडी के मरीजों में अब इस नए संक्रमण का बोझ डाल दिया है। और यह दोहरी मार बीमार तो झेल ही रहे हैं लेकिन, उनके साथ स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े लोग और परिवार भी झेलने को मजबूर हैं। ये बात अब किसी से छुपी नहीं है कि हमारी जन स्वास्थ्य सेवाएं कितनी मजबूत और सक्षम हैं उसपर एनसीडी के मरीजों को अगर कोरोना होता है तो ये स्थिति अस्पतालों के लिए और भी भयावह हो जाती है।

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खासतौर से उन राज्यों की यहां अगर बात की जाए जो आर्थिक तौर पर कुछ पिछड़े हैं तो वहां कोरोना तो ठीक नहीं हो पा रहा बल्कि प्रशासन कुछ और भी संक्रमित बीमारियों की उम्मीद जाहिर कर रहा है जो बरसात तक तेजी से फैल सकती हैं। मिसाल के तौर पर बिहार में प्रवासी मजदूर धीरे-धीरे अपने घरों को लौट रहे हैं और पिछले साल करीब इन्हीं महीनों में बिहार का मुजफ्फरपुर इंसिफलाइटिस की बीमारी से जूझ रहा था। तो अगर इसी तरह की बीमारियां अलग-अलग राज्यों में कोरोना की मौजूदगी में पैदी हुईं तो कोई भी अब आसानी से अंदाजा लगा सकता है कि क्या होगा या क्या हो सकता है।

अकेले एनसीडी (NCD) की वजह से 53 प्रतिशत भारतीय दिल का दौरा पड़ने से, कैंसर, डायबिटीज और फेफड़ों से संबंधित बीमारियों से 70 साल की उम्र तक मर जाते हैं। हर चार में से एक भारतीय आज 70 साल की उम्र तक पहुंचते-पहुंचते एनसीडी से ही मरता है। अब यही हाल युवाओं का भी है देश में युवाओं में ध्रुमपान एक आदत भी है शौक भी, स्टाइल भी और नशा भी है। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 2015-16 के मुताबिक देश में जहां 45 फीसद पुरूष सिगरेट पीता है वहीं करीब 15-49 उम्र की सात प्रतिशत महिलाएं भी किसी न किसी तरह का नशा करती हैं चाहे वह धुम्रपान हो या तंबाकू, गुटका वगैरह। यही वजह है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन का भी कहना है कि इस तरह के लोग कोरोना के बहुत तेजी से शिकार होते हैं।

भारत में अब तक कोरोना से मरने वालों में सहायक बीमारियों यानी कोमोर्बिडीटी को एक बड़ी वजह माना गया है जैसे- डायबिटीज, हाइपरटेंशन, किडनी या दिल से जुड़ी बीमारियां वगैरह। डॉक्टरों का कहना है कि एनसीडी का शरीर पर असर मरीज खुद काफी हद तक कम कर सकता है जरूरत है तो बस अच्छी जीवनशैली की जिसमें संतुलित खान-पान, थोड़ी कसरत, पानी पीना और पॉजिटिव सोच रखना। क्योंकि यह बिल्कुल जरूरी नहीं कि एनसीडी खराब जीवनशैली की वजह से ही हो इसके पीछे किसी भी इंसान के जींस और वंश काफी मायने रखता है।

तो कोरोना के मद्देनजर सरकार और स्वास्थ्य एजेंसियों को भी चाहिए कि एनसीडी चिकित्सा में बिल्कुल कोताही न बरतें। क्योंकि कोरोना से मरने वालों की मेडिकल हिस्ट्री अगर देखी जाए तो उनमें हाइपरटेंशन, डाइबिटीज, किडनी, दिल या कैंसर की बीमारी ने कोरोना की एक सहायक बीमारी के तौर पर काम किया है। इस वक्त देश में कोरोना से मरने वालों में 7 प्रतिशत मरीज डायबिटीज और 6.5 प्रतिशत मरीज हाइपरटेंशन के दर्ज किए गए हैं। और इसमें उम्र के लिहाज से देखे तो बुजुर्ग ही सबसे ज्यादा हैं इसलिए 60 साल और इससे ऊपर के एनसीडी के मरीजों को कोरोना संक्रमण से बचाना बेहद जरूरी है। डायबिटीज के प्रसार का औसत रेट करीब 45 प्रतिशत है लेकिन, प्रीडायबिटीज यानी डायबिटीज का पहला चरण या बार्डर के करीब-करीब 20 प्रतिशत आबादी है। क्योंकि शरीर की कम रोग प्रतिरोधक क्षमता वाले यही लोग बहुत जल्दी फंगल और बैक्टीरिया संक्रमण की चपेट में आते हैं और ऐसे ही कोरोना इनके शरीर को अपना घर बना लेता है।

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इसलिए इन तमाम बातों के मद्देनजर अगर हम यूं ही सिर्फ कोरोना के खिलाफ जंग करते रहे तो बाकी बीमारियों की अनदेखी होती रहेगी और वे निकट भविष्य में बड़ा रूप ले लेंगी। जैसे कोरोना के चलते देशभर में टीकाकरण प्रोग्राम रोक दिया गया। ये सरकार का वह खास प्रोग्राम है जिसमें- टीबी, खसरा, पोलियो, हैपेटाइटिस, डिपथीरिया और रोटावायरस जैसी जानलेवा बीमारियों के खिलाफ लड़ने के लिए वैक्सीन दिए जाते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि देश के प्राथमिक चिकित्सा केन्द्र और घर-घर जाकर ड्रॉप पिलाने और टीके की जागरुकता फैलाने वाली आशा दीदीयां सभी को सरकार ने अंधाधुंध कोरोना की लड़ाई में झोंक दिया। एक अनुमान के मुताबिक सिर्फ भारत में 50 लाख बच्चों के टीकाकरण में रुकावट आई है। लेकिन सरकार अगर वक्त रहते इन तथ्यों का भी ध्यान रखे तो न सिर्फ संक्रमित बल्कि गैर-संक्रमित बीमारियों से भी देश पार पा लेगा।

 

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